कथा यात्रा
कुसुम नारायण "नारायणी"
कहानी संग्रह
एक और हुमायूं
इन बारह कहानियों के संग्रह में बहुचर्चित "एक और हुमायूं" भी है. इस कहानी की पृष्टभूमि १९४७ में देश का विभाजन है और इसकी मुख्य पात्र हिन्दु परिवार में जन्मी एक छोटी लड़की है जिसे अपने पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम परिवार से बहुत लगाव है. यह कहानी जहाँ एक तरफ़ इन दो परिवारों के आपसी लगाव और उठने-बैठने की गँगा-जमुनी तहज़ीब को चित्रित करती है, वहीं विभाजन के समय विचारों में बढती कट्टरता और कटुता को भी दर्शाती है. इस कहानी को साम्प्रदायिक दूरी के उदय के नाज़ुक प्रदर्शन के लिए पुरुस्क्रित किया गया था.
अर्घ्य उसी चाँद को
बाईस कहानीयों का यह संग्रह २००५ में प्रकाशित हुआ. लेखिका के शब्दों में "बड़ी सहज सी हैं इस संग्रह की कहानीयां. न घटनाक्रम के बड़े घुमावदार आडम्बर, न पिरोया शब्द्जाल, न काव्यात्मक कलात्मक कथानाक - बस यथार्थ के ठोस धरातल पर टिकी अपने आसपास के परिवेश मे रंची बसी हैं. सामान्य जन की सामान्य कथा व्यथा ही इनमें उभरी है".
नीला लिफ़ाफ़ा गुलाबी कागज़
सोलह कहानियों का यह संग्रह परिवार के व्यापक ढांचे के भीतर मानवीय स्पर्ष के कई पहलुओं को प्रस्तुत करता है। शीर्षक कहानी चिरस्थायी वैवाहिक संबंधों में आपसी सम्मान की भूमिका का एक मार्मिक प्रदर्शण करती है.
ग्यारहवां मैडल
१८ कहानियों का यह संकलन पुनर्विवाह, परमाणु परिवार में बड़ों के उपचार, और सेवानिवृत्ति की चुनौतियों जैसे नाजुक विषयों को छूता है. शीर्षक कहानी एक छोटे बच्चे के परिपेक्ष को प्रस्तुत करती है जो अपने हीरो, एक सैनिक जिसे युद्ध में बहादुरी के लिए कई पदक प्राप्त हुए हैं, के हाल में किये गये गंभीर अपराध को समझने का प्रयत्न करता है.
रहने दो रिपोर्टर
१४ कहानियों का यह संकलन जटिल सामाजिक परिस्थितिओं से निपटने का प्रयास करते मुख्य पात्रों का चित्रण करता है. नेतृत्व कहानी जहाँ "अति उत्साहित" खोजी पत्रिकारिता के आम व्यक्ति पर होते प्रभाव को दर्शाती है, वहीं दो-मुहे समाज के पाखंड को भी चित्रित करती है, जो जागरूक कहानियों की प्रशंसा तो करता है लेकिन उनकी सीख को अपनाता नहीं है.
मोहदंश
१९८८ में प्रकाशित "मोहदंश" उपन्यास एक मध्यवर्गीय परिवार की गाथा है जो बनारस में चालीस वर्ष रहने के बाद देश की राजधानी नई दिल्ली वापस आता है। यह कहानी महानगर में हो रहे परिवर्तन की पृष्ठभूमि में परिवार के सदस्यओं में आधुनिकता को ओढ़ने और परंपरा के संरक्षण करने के बीच संघर्ष को दर्शाती है.
रेत के महल
शैली और कथन में सरल यह उपन्यास 'सरिता' में १९८९ में श्रृंखलाबद्ध किया गया और बहुत प्रशंसित रहा. तनाव कैसे वैवाहिक संबंधों में उठता है - इस चित्रण के माध्यम से यह उपन्यास सवाल उठाता है कि समय के साथ भारतीय महिलाओं के लिए क्या दुनिया वास्तव में बदली है या वे अपनी पारिवारिक पहचान और सामाजिक भूमिकाओं की उम्मीदों में अब भी फंसी हैं ?
सूर्यमुखी
यह उपन्यास लेखिका के पसंदीदा विषय को दर्शाता है - कैसे एक मध्यवर्गीय परिवार समाज में तेजी से बदलते मानदंडों के साथ जूझने की कोशिश कर रहा है. ईसकी मुख्य पात्र एक युवा विधवा है जो जीवन में कुछ हासिल करना चाहती है लेकिन अपने परिवार के साथ रिश्ते को बनाए रखने के लिए अपनी उम्मीदों को दबा कर रखती है.
"अनुबन्ध" और "भरी दोपहरी रेत पर"
इन दो लघु उपन्यासों में लेखिका करीबी पारिवारिक रिश्तों में पड़ती दरारों की चर्चा करती हैं और उनके समाधान की आवश्यक्ता को दर्शाती हैं .